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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

सामान्य शब्दों में नायिका का अर्थ है- नायक की प्रिया या नायक की पत्नी। नायिका भी नायक के समान गुणसम्पन्न होती है। नायिका नाट्य की प्राणवाहिनी धारा है, जिसमें जीवन का मर्मस्पर्शी मधुर रस प्रवाहित होता है।

नायिका के सामान्य गुण - नायिका तदगुणा कही गयी है अर्थात् किसी रूपक की नायिका को भी नायक के समान विनम्रता, माधुर्य, दक्षता, वाक्पटुता, लोकप्रियता, प्रसिद्ध वंश में उत्पत्ति और यौवन आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।

नायिका के भेद - "स्वान्यासाधारणस्त्रीतिनायिकात्रिधा" सर्वप्रथम नायिका तीन प्रकार की कही गयी है।

1. स्वकीया नायिका
2. परकीया नायिका
3. सामान्य नायिका या सामान्य स्त्री।

इनके लक्षण एवं भेद प्रभेद निम्न प्रकार हैं-

1. स्वकीया नायिका - " स्वीया शीलार्जवादियुक्" स्वकीया नायिका शीलवती होती हैं। शील से अभिप्राय है नायिका का पतिव्रता होना। वह कुटिलता से रहित, सरलता से युक्त तथा पति की सेवा में निपुण होनी चाहिए। इस तरह पतिव्रता, सरल एवं लज्जावती अपनी पत्नी ही स्वकीया नायिका कही जाती है। स्वकीया नायिका के तीन भेद कहे गये हैं।

1. मुग्धा स्वकीया
2. मध्या स्वकीया
3. प्रगल्भा स्वकीया।

(i) मुग्धा स्वकीया नायिका - " मुग्धा नववयः कामारतौ वामा मृदुः क्रुधि। " मुग्ध स्वकीया नायिका वह होती है जो नवीन यौवनावस्था और नवीन कामभावना वाली हो। यह रति क्रीड़ा में झिझकने वाली और क्रोध करने में कोमल होती है अर्थात् इसका प्रणय कोप आसानी से दूर हो जाता है।

(ii) मध्या स्वकीया नायिका - "मध्योद्यद्यौवनानङगा मोहान्तसुरतक्षमा।" जिसमें यौवन और कामभाव का प्रादुर्भाव स्पष्ट दिखायी देने लगता है, जो मूर्छा की अवस्था पर्यन्त रति में समर्थ है. वह मध्या स्वकीया है। इससे यह स्पष्ट है कि मध्या स्वकीया नायिका पूर्ण यौवन वाली होती है। मध्या स्वकीया नायिका तीन प्रकार की होती है-

1. धीरामध्या
2 अधीरा मध्या
3. धीराधीरा मध्या।

(iii) प्रगल्भा स्वकीया नायिका-

'यौवनान्धा स्मरोन्मत्ता प्रगल्भा दयिताङगके।
विलीय मानेवानन्दाद्रतारम्भेऽप्येचेतना।"

प्रगल्भा अर्थात् प्रगाढ़ यौवन वाली नायिका यौवन में अन्धी सी काम से उन्मत्त सी, प्रिय संयोग तथा काम जनित सुरत के आनन्द के कारण प्रियतम के अंगों में विलीन होती हुई सी (प्रगाढ़ आलिंगन करने वाली ) और रति क्रीड़ा के आरम्भ में ही मूर्छित सी हो जाती है। प्रगल्भा नायिका के भी तीन भेद कहे गये हैं -

1. धीरा प्रगल्भा
2. अधीरा प्रगल्भा
3. धीराधीरा प्रगल्भा

तीन प्रकार की मध्या और तीन प्रकार की प्रगल्भा नायिकाएँ जेष्ठा और कनिष्ठा के भेद से दो-दो प्रकार की होती है। इस तरह मध्या एवं प्रगल्भा 12 भेद हुए और एक प्रकार की मुग्धा नायिका। कुल मिलाकर स्वकीया नायिका तेरह प्रकार की हुई।

2. परकीया नायिका-

"अन्यस्त्री कन्यकोढा च नान्योढाऽङ्गिरसे क्वचित्।
कन्यानुरागामिच्छातः कर्यादगांगिसंश्रयम॥"

परकीया नायिका दूसरे की विवाहिता स्त्री या अविवाहिता कन्या होती है। दूसरे की विवाहिता को अन्योढ़ा ( परकीया) कहा जाना ठीक है पर कन्या को परकीया इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह विवाह से पूर्व अन्य के वश में (पिता- भाई आदि के अधीन) होती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि अन्योढ़ा ( दूसरे की विवाहिता स्त्री) को कभी भी नाटक में अंगी रस की नायिका नहीं बनाया जा सकता। जो अविवाहिता कन्या होती है उसके प्रति नायक के अनुराग का वर्णन करते हुए नाटककार उसे अंगी रस, अथवा अंग रस की नायिका भी बना सकता है।

3. सामान्या नायिका - साधारण स्त्री तो गणिका होती है अर्थात् गणिका को सामान्य नायिका कहा जाता है। वह संगीत आदि कलाओं में निपुण तथा प्रगल्भ एवं धूर्त होती है। वह किसी पुरूष के प्रति तभी तक प्रेम दिखाती है जब तक उसके पास धन होता है। जब वह धन रहित हो जाता है तब गणिका उसकी उपेक्षा कर देती है।

नायिकाओं की अवस्थाएँ - पूर्व में कही गई नायिकाओं की आठ अवस्थाएँ होती

1. स्वाधीनपतिका - " आसन्नायत्तरमणा हृष्टा स्वाधीनभर्तृका"- जिस नायिका का पति/ प्रियतम उसके पास उसके वश में रहता है वह स्वाधीनपतिका कहलाती है।

2. वासकस्रज्जा - " मुदा वासकसज्जा एवं मंडयत्येष्यति प्रिये” प्रियतम आने ही वाला है ऐसा जानकर जो नायिका स्वयं को तथा अपने निवास (घर) को सजाती सँवारती है वही वासकसज्जा कहलाती है।

3. विरहोत्काण्ठिता - "चिरयत्यव्यलीकेतु विरहोत्कंठितोन्मना" प्रियतम द्वारा कोई अपराध ( अन्यासक्ति रूप अपराध) न किए जाने पर भी निर्धारित समय पर उसके आने में देरी होने के कारण प्रियतम के वियोग में उससे मिलन के लिए उत्कंठित नायिका विरहोकंठिता कही जाती है।

4. खण्डिता - " ज्ञातेऽन्यासंगविकृते खंडितेर्ष्याकषायिता" प्रियतम को अन्या नायिका के सहवास चिह्नों से युक्त देखकर जो नायिका ईर्ष्या से कलुषित हो उठती है, वह खंडिता कहलाती है।

5. कलहान्तरिता - " कलहान्तरिताऽमर्षाद्विधूतेऽनुशयार्तियुक्।" जो नायिका क्रोध से अपराधी नायक का तिरस्कार करके बाद में पश्चाताप करती है, उसे कलहान्तरिता नायिका कहा जाता है।

6. विप्रलब्धा : " विप्रलब्धोक्तसमयप्राप्तऽतिविमानिता। " पूर्व निर्धारित समय पर प्रिय के न आने से जो नायिका स्वयं को अपमानित हुआ समझती है, वह विप्रलब्धा कहलाती है।

7. प्रोषिताप्रिया - " दूरदेशान्तरस्थे तु कार्यतः प्रोषितप्रिया। " जिस नायिका का प्रियं किसी कार्य से दूर देश में स्थित होता है, वह प्रोषितप्रिया कहलाती है।

8. अभिसारिका - "कामार्ताऽभिसरेत्कान्तं सारयेद्वाऽभिसारिका।" काम पीड़ा से व्याकुल होकर जो नायिका स्वयं अपने प्रियतम के पास रमण हेतु जाती है, अथवा प्रिय को अपने पास बुलाती है, वह अभिसारिका कहलाती है।

जिस प्रकार हार केयूर आदि आभूषण नारी के शरीर की शोभा बढ़ाते हैं उसी प्रकार यौवनावस्था में शरीर में प्रकटित होने वाले कुछ विकार (परिवर्तन) शरीर की शोभा बढ़ाते हैं। अत: उन्हें हार - भुजबन्द आदि के समान अलंकार कहा जाता है। यौवनावस्था में उत्पन्न होने वले इन सात्विक अलंकारों की संख्या बीस मानी गयी है। इनमें तीन शरीरज अलंकरण हैं-

1. भाव
2. हाव
3. हेला

सात अयनज अलंकरण कहे जाते हैं-

1. शोभा
2. कांति
3. दीप्ति
4. माधुर्य
5. प्रगल्भता
6. औदार्य
7. धैर्य।

इनके अलावा दस स्वभावज अलंकरण कहे गये हैं-

1. लीला
2. विलास
3. विच्छित्त
4. विभ्रमं
5. किलकिंचित
6. मोट्टायित
7. खुट्टमित
8. विव्वोक
6. ललित
10ए विहृत 

नायिका इन सबसे युक्त होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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